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मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बजरंग बाण कब और क्यों और किसे करना चाहिए?

बजरंग बाण कब और क्यों और किसे करना चाहिए? जब मुश्किल में हों प्राण, बजरंग बाण का पाठ पूरी श्रद्धा से करें। जब आप भयंकर मुसीबत से घिरे हो परेशानियों से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा हो नौकरी में भयंकर मुश्किल हो, नौकरी छूट गई हो या छूटने वाली हो तंत्र मंत्र से किसी ने बाधा पहुंचाई हो संकट में कभी भी बजरंगबाण पढ़ सकते हैं , संकट से तुरंत मुक्ति दिलाता है बजरंगबाण अगर ऐसा है तो श्री हनुमान जी का सबसे शक्तिशाली बजरंग बाण आपकी सहायता कर सकता है। कहा जाता है कि जहां बजरंग बाण का पाठ किया जाता है, वहां हनुमान जी स्वयं आ जाते हैं। बजरंग बाण क्यों है अचूक ? पवनपुत्र श्री हनुमान जी श्रीराम के भक्त हैं। आप श्रीराम का नाम लें और हनुमान जी आपकी मदद के लिए न आएं ऐसा हो ही नहीं सकता नहीं सकता, क्योंकि बजरंग बाण में हनुमान जी के आराध्य प्रभु श्रीराम की सौगंध दिलाई गई है। इसलिए जब आप श्रीराम के नाम की सौगंध उठाएंगे तो हनुमान जी आपकी रक्षा करने जरुर आएंगे। बजरंग बाण में श्रीराम की सौगंध इन पंक्तियों में दिलाई गई है- भूत प्रेत पिशाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर, इन्हें मारु, तोहिं ...

भगवान श्रीराम ने क्यों किया था पशु पक्षियों को श्राप/ Why did Lord Shri Ram curse the animals and birds?

  अध्याय - २२ ( श्रीराम द्वारा पशु-पक्षियों को अभिशाप देना और उनपर अनुग्रह करना ) पम्पा सरोवर के तट पर पेड़ों की शीतल छाया थी। वहाँ लक्ष्मण की गोद में सिर रखकर श्रीरघुवीर लेटे रहे। उन्हें सीता का विरह दुख अनुभव हो रहा था। उनकी आँखों से अश्रु धारा चल रही थी। उस समय वन में पशु-पक्षी क्रीड़ा कर रहे थे और बहुत बोल रहे थे। उसे सुनकर श्रीजगदीश श्रीरघुवीर के मन में बहुत क्रोध उत्पन्न हो गया। तदनन्तर उस समय उन्होंने उन सब को शाप दिया। रघुवीर ने कहा ‘री कोयल, तुम्हारे स्वर की तान कम हो जाए। हे मृग और मृगी, एक-दूसरे का सग करते तुम्हें आखेटक मार डाले। वहाँ जो हाथी और हथनी सम्भोग कर रहे थेउनको रघुवीर ने शाप दिया और वह वात कही – ‘रे हाथी और हथनी, तुम सुनो। जब तुम सम्भोग करोगे, तब उस गजेन्द्र (हाथी) के अंग सात दिन अचेतन हो जाएँगे। उन्होंने मोर से कहा- 'तुम मुझसे लज्जा नहीं मानते अतः तुम नपुंसक हो जाओ। तब वे सिंह से बोले हे सिंहराज, सुनो। जन्म में केवल एक वार तुम्हें। समागम होगा। उन्होंने चकवा चकवी से कहा मुझ विरही को देखकर भी तुम सम्भोग का भोग कर रहे हो, तो तुम्हारा एक दूसरे से वियोग हो जाए। ऐसे ...

क्यों किया था रावण के कौशल्या का हरण/ राजा दशरथ का विवाह/ राम की माता कौशल्या का हरण/ Adhyatm Guru

क्यों किया था रावण के कौशल्या का हरण/ राजा दशरथ का विवाह/ राम की माता कौशल्या का हरण/ Adhyatm Guru त्रेतायुग की बात जब रावण ने सभी राजाओं को जीत लिया तब उसे कोई लड़ाई करने वाला नहीं मिल रहा था तब वह ब्रम्हा जी से अपनी मौत के बारे पूछने गया था ब्रम्हा जी ने रावण से कहा कि तुम्हारी मृत्यु एक मनुष्य के हाथों होगी और उसका जन्म रघुकुल में होगा उस राजा का नाम दशरथ है उसका विवाह होने वाला है और इधर महाराज अज ने राजा दशरथ का कौशल्या के साथ  विवाह आयोजित किया था, इससे अजराज को बहुत आनन्द हो रहा था । विवाह-दिवस के वीच सात दिन बाकी हैं।  तब नारद ने आकर महाराज अज से एक बात कही राजन सुनो। मैं एक बात कहता हूँ - तुम्हारे घर में बड़ा विघ्न  होने वाला है | राक्षस रावण लंका का राजा है । वह दुर्बुद्धि  राक्षस दशरथ की हत्या करेगा । ऐसी बात मैंने वहाँ जान ली और इस बात को बताने के लिए यहाँ छिप कर (चुपचाप) आ गया । इसलिए मन में विचार कर उसकी रक्षा करो, अपने पुत्र को किसी गुप्त स्थान पर रखो। ऐसा कहकर नारद चले गये, तो अज राजा चिन्तातुर हुए । वर और वधू को हलदी उबटन आदि लगायी गयी और सोचा कि कन्य...

कौन सा ऐसा राजा था जो अपने शरीर का मांस खाने के लिए स्वर्ग से धरती पर आता था। क्यों वह अपने ही शरीर का मांस खाता था। क्या स्वर्ग में खाने के लिए कुछ भी नहीं था जो वह धरती लोक में अपने ही शरीर के मांस को खाता था।

कौन सा ऐसा राजा था जो अपने शरीर का मांस खाने के लिए स्वर्ग से धरती पर आता था। क्यों वह अपने ही शरीर का मांस खाता था। क्या स्वर्ग में खाने के लिए कुछ भी नहीं था जो वह धरती लोक में अपने ही शरीर के मांस को खाता था। भगवान श्री राम ने एक माला जो महा ऋषि अगस्त्य ने भगवान श्री राम को वन जाते वक्त दिया था उसे अपने छोटे पुत्र लव को दे दिया । उस बहुमूल्य कंकण को पहने लव भी अतिशय शोभित हुए। तब लव ने भी उस सम्बन्ध में अगस्त्यजी से पूछा कि, यह आप को कहाँ से प्राप्त हुआ था। तब अगस्त्यजी ने कहा- एक समय दण्डकारण्य में जब मैं एक सरोवर पर स्नान करने गया तो वहाँ स्नान, नित्यकर्म आदि कर लेने के पश्चात् मैं वहाँ अल्प-क्षण लिए बैठ गया। उसी समय कोई स्वर्गीय प्राणी सैकड़ों स्त्रियों को साथ लिए एक विमान पर बैठा हुआ वहाँ आ उतरा । वह दिव्य मालाओं को धारण किए हुए दिव्य गन्धों से चर्चित था । उसके आते ही उस सरोवर से एक भयानक दूषित दुर्गन्धपूर्ण शव निकल कर उसके तट आ लगा। तब वह स्वर्गीय प्राणी अपने विमान से निकल कर उस शव के समीप जा पहुंचा और उसके मांस को सप्रेम भक्षण किया। फिर जल पी कर अपने विमान में जा बैठा। उसी क्ष...

नारद जी ने क्यों दशरथ की माता की हत्या की थी/ नारद ने इंदुमती को मारकर किया पाप/ एक अप्सरा की कथा

नारद जी ने क्यों दशरथ की माता की हत्या की थी/ नारद ने इंदुमती को मारकर किया पाप/ एक अप्सरा की कथा यथासमय रघु को पुत्र प्राप्त हुआ, जिसका नाम अज रखा गया। उसके विद्या प्राप्त कर युवक होने पर, उसे सेना के साथ विदर्भराज की बहिन इन्दुमती के स्वयंवर में भाग लेने के लिए भेजा गया। . अज की सेना पर एक जंगली हाथी ने आक्रमण करके सैनिकों को विचलित कर दिया, लेकिन अज के बाण से आहत वह गज एक दिव्य पुरुष बन गया और अपना उद्धार करने के लिए कृतज्ञतास्वरूप उसने अज को एक सम्मोहन अस्त्र प्रदान किया, जिसके प्रभाव से बिना हिंसा और रक्तपात के शत्रु पर विजय प्राप्त हो जाती है। अज सेना सहित जब विदर्भ पहुंचे, तो विदर्भराज ने उनका हार्दिक स्वागत किया और उन्हें सम्मानित एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने भवन में ठहराया।  अगले दिन प्रात:काल जब निर्धारित समय पर अज रंगशाला में पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि इन्दुमती के प्रत्याशी अनेक राजा अपने वैभव का प्रदर्शन करते हुए अपने-अपने आसनों पर बैठे हुए हैं। अज भी अपने लिए निश्चित आसन पर जाकर बैठ गये। थोड़ी देर में जयमाल अपने हाथ में लिये, रूप-गुण सम्पन्न और अपने यौवन से युवको...

धनुष यज्ञ में महाराज दशरथ जी को बुलाया क्यों नहीं गया था ?| Why was Maharaj Dasaratha not invited in the bow yagya?

  धनुष यज्ञ में महाराज दशरथ जी को बुलाया क्यों नहीं गया था ? चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी का न जाना अथवा जनक जी द्वारा उन्हें आमंत्रित न करना कम आश्चर्य की बात नहीं। इस सम्बन्ध में कुछ लोगों का कहना है कि महाराज दशरथ को इसलिए नहीं बुलाया गया था क्यों कि उन्हें श्रवणकुमार को मारने से हत्या लगी थी। परन्तु यह तर्क सर्वथा भ्रामक और तथ्य से परे है, क्यों कि महाराज दशरथ जी के द्वारा श्रवणकुमार का वध रामजन्म से भी पहले हुआ था और उनकी इस हत्या के पाप को (जिससे कि दशरथ का सम्पूर्ण शरीर काला पड़ गया था) महर्षि वसिष्ठ जी के पुत्र वामदेव के द्वारा तीन बार राम-राम कहलाकर दूर करा दी गयी थी और ये ब्रह्महत्या के मुक्त हो चुके थे। इसलिए न बुलाये जाने के कारण में यह वात तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। दूसरा कारण जिसके माध्यम से मैं इस भ्रम का निराकरण प्रस्तुत करना चाहता हूँ, पूज्य पितामह द्वारा प्राप्त प्रसाद स्वरूप है जो निम्ववत् है। एक राजा थे,जिनके एक ही सन्तान (पुत्र) थी। राजा ने बड़ी धूम-धाम से उसका विवाह किया परन्तु विवाहोपरान्त उस लड़के की बुद्धि पता नहीं क्यों राममय हो गयी और वह घर-बार छ...

क्यों एक पुरुष के साथ किया था अगस्त्य ऋषि ने विवाह| अगस्त्य ऋषि का जन्म कैसे हुआ| अगस्त्य को कुम्भज ऋषि क्यों कहते हैं?

क्यों एक पुरुष के साथ किया था अगस्त्य ऋषि ने विवाह|अगस्त्य ऋषि का जन्म कैसे हुआ|अगस्त्य को कुम्भज ऋषि क्यों कहते हैं? मित्रावरुण नामक ब्रम्हावेत्ता धीरमुनि समुद्र तट पर रहते थे, वे तप, अनुष्ठान किया और जप करते रहते थे | २ | ( तट पर ) सागर की लहरें आतीं, तब उनकी अपनी वस्तुएँ बह जातीं । किसी दिन आसन, वस्त्र ( या ) कमण्डलु, तो किसी दिन पात्र ही (बह) जाता । ३ । इससे मुनि समुद्र पर झुंझला उठे ( फिर ) वे बहुत क्रोधायमान हो गये । ( तो उन्होंने निश्चय किया कि) अब मै एक ऐसा पुत्र उत्पन्न करूंगा, जो समुद्र के पानी को पी डालेगा । ४ । तदनन्तर उन्होंने मिट्टी का एक कुम्भ वना लिया और उसमें अपना शुक्र ( वीर्य ) डाल दिया। उन्होंने उस कुम्भ को वहाँ एकान्त स्थान में सम्हाल कर रख दिया । ५ । जब पूरे (नौ) महीने हो गये, तब उस कुम्भ को तोड़कर उसमें से एक पुत्र निकल आया । उसकी अद्भुत आकृति, अर्थात् डीलडौलवाले शरीर में यज्ञोपवीत और कटिसूत्र (भी) था।   उसका नाम ' अगस्त्य ' रखा । यथा-काल ) वह पुत्र बड़ा हो गया । ( फिर ) पिताजी से आज्ञा माँगकर ( फिर वह पावन काशी क्षेत्र में आ गया ।   उसने समस्त विद्या पढ...

कौन हैं गंगा के माता पिता/ क्यों कोई ब्रम्हा की पूजा नहीं करता है/ कैसे हुआ था गंगा का जन्म

पूर्वकाल । में एक समय श्रीशिवजी ने ( एक ) यज्ञ सम्पन्न किया | तब महाभाग श्रीविष्णु, ब्रह्मा तथा सब देवता   उपस्थित हो गये । ८ । सव महान ऋषि कैलाश मे आ गये- वहाँ मिल गये, उपस्थित हो गये । दीक्षा ग्रहण करके श्रीशिवजी बैठ गये। उन्होंने यज्ञ आरम्भ किया । ९ । वहाँ देव, मुनिवर, सिद्ध, चारण, सव लोकपति, ब्रह्मा, विष्णु आदि देव यज्ञ ( स्थान ) में बैठ गये । १० । पूर्णाहुति और पूजा के समय वहाँ उमाजी आ गयीं । उन्होंने अद्भुत साज-शृंगार, वस्त्र, चोली अंग में धारण किया ( था ) । ११ ।,, तब उस समय हवा चली ।, ( इंधर ) उमाजी पूजन करती हैं। तब ( हवा से उन ) सती के अंग पर से वस्त्र खिसक गया और उनका शरीर निरावरण हो गया । १२ । उमाजी के उस अंग को देखकर ब्रह्माजी मन में व्याकुल हो गये । वे परमेष्ठी ब्रह्मा कामातुर हो गये (और) देह-भान भूल गये । १३ ।  विधाता ( ब्रह्मा ) ने ( उमाजी को) बुरी दृष्टि, से देखा, यह सबको दिखायी दिया । तव देव मुनिवर, विष्णु, शिव सब उनसे यों कहने लगे।  १४ । 'हे ब्रह्माजी, तुम यहाँ से उठ ( जा ) कर दूर बैठो। तुमने सती उमाजी पर बुरी दृष्टि की ( बुरी दृष्टि से देखा ), तुम बहुत ...

विश्वामित्र के पिता कैसे बने चांडाल| विश्वामित्र के पिता का क्या नाम था| रामायण की रोचक कथा

विश्वामित्र के पिता का क्या नाम था| रामायण की रोचक कथा विश्वामित्र के पिता कैसे बने चांडाल| विश्वामित्र के पिता का क्या नाम था| रामायण की रोचक कथा गौतम ( नामक ) एक ऋषि थे। उन्होंने न्यायशास्त्र की रचना की। गौतम के एक भले शिष्य थे । उनका नाम गाधि था | १३ वे चार वेदों और छः शास्त्रों के वेत्ता थे, महाज्ञानी तथा प्रमाणभूत तपस्वी थे । उन्होंने ( एक समय) सुन्दर अनुष्ठान ( सम्पन्न ) किया, तो उस समय भगवान् विष्णु प्रकट हो गये | १४ | श्रीविष्णु ने कहा 'हे मुनिराज ! मॉग लो । जो माँगोगे, आज वह ( तुम्हें ) दूंगा ।' ( इसपर ) वे मुनिवर बोले-' हे मुरारि ! मैं यह माँगता हूँ कि तुम मुझे अपनी माया दिखाओ । १५ । ( तव ) श्रीनारायण हँसकर ( यह ) वचन बोले-' माया को परम दारुण समझो । वह तुम्हें आबद्ध करेगी। यह है तो मिथ्या, पर ( बहुत ) कठोर है । १६ । जैसे रस्सी में सर्प ही का भास होता है, सीप में चाँदी की झलक होती है, जैसे लकड़ी के खूंटे का चोर बनता है, स्वप्न में प्राप्त सुख-दुख की तीव्रता होती है, ये सब जिस प्रकार मिथ्या हैं, वैसे ही माया ( वस्तुतः ) मिथ्या है, परन्तु वह बहुत दु.ख देती है; वह...

क्या हनुमानजी भगवान श्रीराम के सगे भाई थे| क्या हनुमानजी सच में सूर्य को निगल गए थे या हमें झूठी बात बताई गई है।

क्या हनुमानजी भगवान श्रीराम के सगे भाई थे| क्या हनुमानजी सच में सूर्य को निगल गए थे या हमें झूठी बात बताई गई है। यह कथा रामायण के श्रीराम जन्म से शुरू होती है जिसमें राजा दशरथ के द्वारा कराए गए पुत्रकामेष्ठि यज्ञ से निकला प्रशाद को राजा दशरथ ने बड़ा भाग कौसल्या को दिया ? | १३ | तब  मै कैकेई ने कहा कि मैं राजा की बहुत प्यारी हूँ । मैंने ( उनका ) बहुत उपकार किया । मैने उन्हें युद्ध में जितवाया ( विजयी बनाया ), और निश्चय ही यश प्राप्त कराया । १४ । तव ब्रह्मा के पुत्र वसिष्ठ ने कहा - ' रानी, यह चरु प्राशन ( भक्षण ) करो । यदि अधिक समय लगाओगी, तो कुछ विघ्न ( संकट ) उत्पन्न होगा ' । १५ । ऐसा कहते (समय) ही एक आश्चर्य हुआ । एक चील वहाँ आयी । लपककर उसने पिण्ड ( छीन) लिया, (और) उड़कर वह आकाश में गयी । १६ । तब कैकेयी भयंकर विलाप करती है । उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बहती है । वह शोक करती है, रोती है । ( इस प्रकार ) हाहाकार होने लगा । १७ । तब दशरथ राजा ने कौसल्या को आँख से इशारा किया। उन्होंने सुमित्रा के सामने भी देखा, तो वह मतलब समझ गयी १८ । कौसल्या ने अपने चरु में से चौथा भाग कैकेयी को ...

आमलकी एकादशी पूजा विधि

  आमलकी एकादशी पूजा विधि 14 मार्च, 2022 (सोमवार) एक ऐसा व्रत जिस पर आंवले के वृक्ष की पूजा करने से मिलती है मोक्ष की प्राप्ति। तो आइए जानते है इस व्रत के बारे में संपूर्ण जानकारी। आमलकी एकादशी वैसे तो हिंदू धर्म में कई व्रत आते है, लेकिन एकादशी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि हर एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती है, जो कि महीने में दो बार आती है। लेकिन फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे आमलकी एकादशी कहते है। इस दिन जो व्यक्ति पूरी विधि-विधान से व्रत का पालन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आमलकी का मतलब आंवला से होता है पद्म पुराण के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु का के प्रिय वृक्ष माना जाता है। इस वृक्ष में श्री हरि और माता लक्ष्मी का वास होता है जिस कारण से आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस दिन आंवले का उबटन लगाने, आंवले के जल से स्नान करने, आंवला पूजन करने, आंवले का भोजन करने और आंवले का दान करने की सलाह दी जाती है। आमलकी एकादशी आइए अब जानते है आमलकीए कादशी व्...

क्यों रम्भा ने किया था ऋषि श्रृंगी के साथ संभोग| क्यों राजा दशरथ ने दिया था अपने दामाद के साथ धोखा

  क्यों राजा दशरथ ने दिया था अपने दामाद के साथ धोखा परिचय- यह कथा राजा दशरथ की कोई संतान ना होने के कारण देवताओं ने रंभा को भेजकर श्रृंगी ऋषि लाने के लिए कहा देवों के राजा ( इन्द्र ) आज्ञा दी और अद्भुत रूपवाली ( रम्भा नामक ) अप्सरा ( वहाँ से ) चली । वह तत्क्षण महावन में आ गयी । उस स्थान पर ( उस समय ) विभाण्डिक (ऋषि) नहीं थे; वहाँ शृंगी अकेले बैठे हुए थे । ६ । जिन्हें समूचा विश्व एक-सा ( समान ) था, स्त्री-पुरुष ( के भेद ) का भान नहीं था, ऐसे वे शृंगी ऋषि स्वच्छ आसन पर ध्यान लगाये हुए है; केवल ब्रह्म में वे तल्लीन थे । ७ । वह तेजस्विनी, रूप के प्रकाशवाली अप्सरा उस आश्रम के पास आयी । टेढ़ी थीं। उसके स्तन पुष्ट थी ।८। वह मृगनयनी थी; उसकी भौंहें धनुष्य-सी थे वह सिंह की सी पतली कमरवाली । वह चन्द्रमुखी और चम्पा के समान वर्णवाली अप्सरा है | वह मन्द-मन्द मुस्कुराती है । वह गति में (मानो) हिरनी है । उसके हाव-भाव अतिशय आनन्द ( रस ) उत्पन्न करते हैं और स्तन-मण्डल को हिलाते हैं । ९ । उसने शरीर पर आभूषण तथा नव-नव रंग के वस्त्र, हार और चोली पहनी है । उस कामिनी ने हाथ में वीणा ली है । जिसके गायन (...

क्यों हुआ था दशरथ और शुक्रचार्य का युद्ध| देवासुर संग्राम कब हुआ था| दशरथ ने कैकेयी क्या वरदान दिया

संक्षिप्त कथा- अध्याय - १० (दशरथ द्वारा कैकेयी को वर प्रदान सतयुग का समय चल रहा था असुरों का राजा वृपपर्वा अद्भुत पराक्रमी उसने शुक्राचार्य द्वारा वृष्टिबंध नामक प्रयोग कराया । (ऐसा था। प्रयोग कि जिससे वर्षा नहीं होती, सूखा-अकाल पड़ जाता है) । १ । उन्होंने मन में गर्व करते हुए मेघों को आकृष्ट किया। इससे वारह वर्षों तक अनावृष्टि (वर्षा का अभाव ) हो गयी। इससे सव पीड़ित हुए | २ | गायें, ब्राह्मण आदि सव प्रजा अपार दुःख को प्राप्त हुई । यज्ञ-याग सब बन्द हो गये और हाहाकार मच गया | ३ | तव इन्द्र ने वृषपर्वा के साथ बहुत दिन युद्ध किया । परन्तु वह महाबली असुर जीता नहीं गया; क्योंकि उसके मस्तक पर शुक्राचार्य का ( वरद ) हस्त था । ४ । ( तदनन्तर ) ब्रह्मा ने इन्द्र से कहा - वह ( वृषपर्वा ) तुमसे नहीं जीता जा सकत्ता | यदि दशरथ को बुला लाओ, तो वह दानव पराजित हो जायगा । ५ । तब अयोध्या में आकर इन्द्र ने दशरथ राजा से याचना ( विनती) की । तब अजनन्दन दशरथ तैयार होकर युद्ध करने के लिए चले । ६ । तब कैकेयी ने कहा कि मुझे साथ ले चलो, मुझे युद्ध देखना है, मैं देखूंगी कि तुम्हारा कैसा बल है, पराक्रम कैसा है, ( यु...

लक्ष्मण जी ने बहुत सी धनुहियाँ कब तोड़ी थी ?|बहु धनुहीं तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।

  लक्ष्मण जी ने बहुत सी धनुहियाँ कब तोड़ी थी ?  बहु धनुहीं तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।  बालकाण्ड 270/6) जब परशुराम जी क्षत्रियों का नाश कर रहे थे, उस समय परशुराम जी ने अनेक राजाओं के अनेक धनुष तथा तमाम देवताओं के धनुषों को लेकर एकत्रित किया, इनके बोझ से पृथ्वी और शेष जी बहुत परेशान हो गये। पृथ्वी ने माता और शेष जी पुत्र बनकर परशुराम जी के आश्रम को आये, क्योंकि पृथ्वी (माता) को तथा शेष जी को यह भय था कि यदि ये धनुष कहीं परशुराम जी की अनुपस्थिति में राक्षसों को मिल गये तो प्रलय मच ये जायेगी। पृथ्वी माता ने परशुराम जी से बड़े दुख के साथ कहा, भगवन्, यह बालक मेरा ने बहुत ही चंचल है, हम बहुत ही दुखित हैं। इस बालक की चंचलता के कारण इसे कोई शिष्य नहीं बनाता है। मैं बहुत से ऋषियों के पास भटकने के बाद आपके पास आयी हूँ। मुझे आशा है कि आप मेरे इस पुत्र को शिष्य रूप में ग्रहण करके इसके सभी अपराध सहकर इसे किसी प्रकार का दण्ड न देते हुए, आप इसे अवश्य शिक्षा ग्रहण करायेंगे और हमें महान दुखों से बचा लेंगे। हम दोनों आपकी सेवा करते रहेंगे। परशुराम जी शेष जी के सम्मोहन के प...