भगवान श्रीराम ने क्यों किया था पशु पक्षियों को श्राप/ Why did Lord Shri Ram curse the animals and birds?
अध्याय - २२ ( श्रीराम द्वारा पशु-पक्षियों को अभिशाप देना और उनपर अनुग्रह करना )
पम्पा सरोवर के तट पर पेड़ों की शीतल छाया थी। वहाँ लक्ष्मण की गोद में सिर रखकर श्रीरघुवीर लेटे रहे। उन्हें सीता का विरह दुख अनुभव हो रहा था। उनकी आँखों से अश्रु धारा चल रही थी। उस समय वन में पशु-पक्षी क्रीड़ा कर रहे थे और बहुत बोल रहे थे। उसे सुनकर श्रीजगदीश श्रीरघुवीर के मन में बहुत क्रोध उत्पन्न हो गया। तदनन्तर उस समय उन्होंने उन सब को शाप दिया। रघुवीर ने कहा ‘री कोयल, तुम्हारे स्वर की तान कम हो जाए। हे मृग और मृगी, एक-दूसरे का सग करते तुम्हें आखेटक मार डाले। वहाँ जो हाथी और हथनी सम्भोग कर रहे थेउनको रघुवीर ने शाप दिया और वह वात कही – ‘रे हाथी और हथनी, तुम सुनो।
जब तुम सम्भोग करोगे, तब उस गजेन्द्र (हाथी) के अंग सात दिन अचेतन हो जाएँगे। उन्होंने मोर से कहा- 'तुम मुझसे लज्जा नहीं मानते अतः तुम नपुंसक हो जाओ। तब वे सिंह से बोले हे सिंहराज, सुनो। जन्म में केवल एक वार तुम्हें। समागम होगा। उन्होंने चकवा चकवी से कहा मुझ विरही को देखकर भी तुम सम्भोग का भोग कर रहे हो, तो तुम्हारा एक दूसरे से वियोग हो जाए। ऐसे शाप को सुनकर समस्त पक्षी और पशु मन में परिताप पछतावा ग्लानि को प्राप्त हो गये, तो वे अनुग्रह पूछने के लिए स्वयं रघुवीर की शरण में आ गये। तब श्रीराम ने कहा - ‘री कोयल, तुम्हें शाप के बारे में कहता हूँ।
ऋतु में तुम्हारा स्वर खुल जाएगा और तत्पश्चात् बन्द रहेगा। वसन्त उन्होंने मृग और मृगी से कहा 'यदि तुम दिवस में समागम करोगे, तो आखेटक तुम्हें मार डालेगा; परन्तु तुम रात में निर्भय हो जाओगे, अतः रात में आनन्द - पूर्वक क्रीड़ा करना। उन्होंने हाथी से कहा ' स्त्री-संग करने पर तुम दो घड़ी मूच्छित हो जाओगे । के बारे में उन्होंने कहा मोर के अश्रु -बिन्दुओं से उसके वंश का फिर मोर विस्तार होता जाएगा। उन्होंने चकवा-चकवी से कहा तुम्हारा वियोग रात में ही रहेगा तुम दम्पति दिवस में मिल पाओगे और तब तुम्हारा संयोग हो पाएगा। तदनन्तर उन्होंने सिंह से कहा एक बार के समागम से तुम्हारे एक सन्तति उत्पन्न हो जाएगी | यदि तुम्हारे अनेक सन्तानें हो जाएँ, तो वे समस्त विश्व को उजाड़ कर देंगी। समर्थ रघुवीर ने इस प्रकार सब पर अनुग्रह किया। तदनन्तर वे लक्ष्मण सहित पम्पा सरोवर के तट पर विराजमान रहे। अरण्य काण्ड की यह पावन कथा यहाँ पूर्ण हो गयी। मैंने उसे अपनी बुद्धि के अनुसार यथार्थ रूप से कहा ।
हे श्रोताजनो, उसे सुनिए श्रीरघुवीर के गुण अपार हैं- उनकी कोई सीमा नहीं हो सकती। अथाह जल से समुद्र भर गया है, उसे घट में कैसे भर दिया जा सकता है ? अर्थात् श्रीराम के गुण समुद्र-जल के समान अथाह हैं, उन्हें छोटी-सी रचना में किस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है ? इससे पूर्व अनेक कवि हो गये हैं । फिर आगे, भविष्य में भी अनगिनत हो जाएँगे। कितने ही अभी श्रीरघुवीर के गुणों में। के का गान कर रहे हैं; फिर भी कोई उनके अन्त को प्राप्त नहीं हो पा रहा है। श्रीहरि की कथा-रूपी अमृत का स्वाद अद्भुत है। उस कथा के श्रवण से सुख प्राप्त होता है। एक केवल श्रवण मात्र हरि भक्ति का सर्व प्रथम मूलाधार कहता है। सिवा विषयी पामरों के वह (कथा) मुमुक्षु लोगों को प्रिय लगती है। जो जीवन्मुक्त तथा ब्रह्मवेत्ता हों, वे उसका श्रवण करते रहते। नपुंसक, पुरुष, स्त्री- सबको हरिकथा का श्रवण - पठन सम्बन्धी अधिकार है। अतः जो आदर-पूर्वक उसे नहीं सुनते, उनके जीवन को धिक्कार है। अमृत का सेवन करते-करते मद चढ़ता है; फिर उससे अज्ञ जन उन्मत्त हो जाते हैं। परन्तु हरि कथा-रूपी अमृत से मोह मत्सर जैसे विकार और आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक जैसे विविध ताप दूर हो जाते हैं। अमृत पान का अधिकार केवल देवों को प्राप्त है। उनके अतिरिक्त और कोई अल्प अमृत को भी प्राप्त नहीं हो सकता।
परन्तु हरिकथा रूपी अमृत का अधिकार राजा-रंक, ऊँच-नीच सबको प्राप्त है। इसके उपरान्त गंगा सबको पावन तो करती है, फिर भी उसमें डूब जाने पर प्राण निकल जाते हैं। परन्तु हरि-कथा रूपी गंगा में डूब जाने पर वे लोग मोक्ष पद को प्राप्त हो जाते है। अमृत, गंगा आदि से हरि-कथा की यह अधिकता है। उसे कोई विरला ही जानता है। जिस पर केशव अर्थात् भगवान् करुणा करते हों, उसी कीमत ऐसी हरि कथा में अनुरक्त होती है। इसलिए हे लोगो, आलस्य का त्याग करके हरि-कथा रूपी अमृत का पान कीजिए | उससे सब पाप जल जाते हैं और श्री भगवान् प्रसन्न हो जाते हैं।
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