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बजरंग बाण कब और क्यों और किसे करना चाहिए?

बजरंग बाण कब और क्यों और किसे करना चाहिए? जब मुश्किल में हों प्राण, बजरंग बाण का पाठ पूरी श्रद्धा से करें। जब आप भयंकर मुसीबत से घिरे हो परेशानियों से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा हो नौकरी में भयंकर मुश्किल हो, नौकरी छूट गई हो या छूटने वाली हो तंत्र मंत्र से किसी ने बाधा पहुंचाई हो संकट में कभी भी बजरंगबाण पढ़ सकते हैं , संकट से तुरंत मुक्ति दिलाता है बजरंगबाण अगर ऐसा है तो श्री हनुमान जी का सबसे शक्तिशाली बजरंग बाण आपकी सहायता कर सकता है। कहा जाता है कि जहां बजरंग बाण का पाठ किया जाता है, वहां हनुमान जी स्वयं आ जाते हैं। बजरंग बाण क्यों है अचूक ? पवनपुत्र श्री हनुमान जी श्रीराम के भक्त हैं। आप श्रीराम का नाम लें और हनुमान जी आपकी मदद के लिए न आएं ऐसा हो ही नहीं सकता नहीं सकता, क्योंकि बजरंग बाण में हनुमान जी के आराध्य प्रभु श्रीराम की सौगंध दिलाई गई है। इसलिए जब आप श्रीराम के नाम की सौगंध उठाएंगे तो हनुमान जी आपकी रक्षा करने जरुर आएंगे। बजरंग बाण में श्रीराम की सौगंध इन पंक्तियों में दिलाई गई है- भूत प्रेत पिशाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर, इन्हें मारु, तोहिं ...

क्यों हुआ था दशरथ और शुक्रचार्य का युद्ध| देवासुर संग्राम कब हुआ था| दशरथ ने कैकेयी क्या वरदान दिया


संक्षिप्त कथा- अध्याय - १० (दशरथ द्वारा कैकेयी को वर प्रदान

सतयुग का समय चल रहा था असुरों का राजा वृपपर्वा अद्भुत पराक्रमी उसने शुक्राचार्य द्वारा वृष्टिबंध नामक प्रयोग कराया । (ऐसा था। प्रयोग कि जिससे वर्षा नहीं होती, सूखा-अकाल पड़ जाता है) । १ । उन्होंने मन में गर्व करते हुए मेघों को आकृष्ट किया। इससे वारह वर्षों तक अनावृष्टि (वर्षा का अभाव ) हो गयी। इससे सव पीड़ित हुए | २ | गायें, ब्राह्मण आदि सव प्रजा अपार दुःख को प्राप्त हुई । यज्ञ-याग सब बन्द हो गये और हाहाकार मच गया | ३ | तव इन्द्र ने वृषपर्वा के साथ बहुत दिन युद्ध किया । परन्तु वह महाबली असुर जीता नहीं गया; क्योंकि उसके मस्तक पर शुक्राचार्य का ( वरद ) हस्त था । ४ । ( तदनन्तर ) ब्रह्मा ने इन्द्र से कहा - वह ( वृषपर्वा ) तुमसे नहीं जीता जा सकत्ता | यदि दशरथ को बुला लाओ, तो वह दानव पराजित हो जायगा । ५ । तब अयोध्या में आकर इन्द्र ने दशरथ राजा से याचना ( विनती) की । तब अजनन्दन दशरथ तैयार होकर युद्ध करने के लिए चले । ६ । तब कैकेयी ने कहा कि मुझे साथ ले चलो, मुझे युद्ध देखना है, मैं देखूंगी कि तुम्हारा कैसा बल है, पराक्रम कैसा है, ( युद्ध - शास्त्र) विद्या कैसी शुद्ध है । ७ । राजा ( दशरथ ) कैकेयी को लेकर रथ में बैठे और वहाँ से चले । बृहस्पति आदि सब देवों की तरह इन्द्र भी उनके साथ आये ।८ । उस समय समुद्र के पार जाकर वे युद्ध करने लगे । दशरथ राजा ने वृषपर्वा के साथ घोर युद्ध किया । ९ । उस समय भीषण युद्ध हुआ और ( उसमें) उन्होंने अनगिनत असुरों को मार डाला | राजा वृषपर्वा को सैन्य सहित प्राणों के अन्त तक लाये ( अर्थात् उन्हें मार डाला ) | १० | तब वृषपर्वा का पक्ष लेकर शुक्राचार्य । । आये ।

शुक्राचार्य और दशरथ का युद्ध 

कुछ असुरों की सेना, जो शेष थी, सव साथ में लें आये । ११ । तब असुरों के गुरु ( शुक्राचार्य ) ने मंत्र पढ़कर असंख्य बाण चलाये । दशरथ राजा ने बाण चलाकर उस समय उन्हें काट डाला । १२ । बाद में शुक्राचार्य को राजा ने व्याकुल कर दिया । तब ब्राह्मणश्रेष्ठ ( शुक्राचार्य ) को बहुत क्रोध आया। वे मानते हैं मैं राजा को अभी मारता हूँ ( मार डालूँगा ) । १३ । तदनन्तर असुरों के गुरु ने वेग से पाँच बड़े वाण चलाये । और उस समय दशरथ के रथ को बारह धनुष दूर हटा दिया । १४ । दशरथ के रथ का धुरा टूट गया, ( जिससे वह ) रथ ज़मीन में धँस गया | तब कैकेयी ने अपना हाथ राजा

 


डालकर उससे ( उसके आधार पर ) रथ को खड़ा रक्खा । १५ । यह नहीं जानते थे कि ( इस ) अवला ( स्त्री ) का ऐसा बल है । वे तो युद्ध में तल्लीन हुए । उनके सामने कोई खड़ा नहीं रह पाता । १६ । राजा दशरथ ने कहा – ' यदि अब मैं इस ब्राह्मण को मार डालूँ, तो (मुझे) ब्रह्महत्या का पाप लगेगा , । उन्होंने मन में ऐसा विचार किया । १७ । और बाद में तीक्ष्ण बाण चलाकर उन्होंने ( उनके ) मस्तक पर से मुकुट को उड़ा दिया । तब शुक्राचार्य सचमुच युद्ध छोड़कर वहाँ से चले गये । १८ । उस समय जय-जयकार हो गया । देव बहुत हर्प-विभोर गये । निश्चय ही अयोध्यापति दशरथ ने शत्रु का संहार कर जय प्राप्त की । १९ । राजा ने कैकेयी को सामने देखा तो वे विस्मित हो गये । उन्होने रथ के पहिये में धुरे के स्थान पर रानी का हाथ देखा । २० । अजनन्दन दशरथ प्रसन्न होकर बोले –' वरदान माँगो, वरदान माँगो । तुमने मुझे रण में सफलता दिलायी और मेरे मान ( प्रतिष्ठा ) की रक्षा की । २१ । इसलिए जो इच्छा हो, सो माँग लो । मैं तुमको आज दो वर देता हूँ । ( इसपर ) रानी ने कहा- 'जव मुझे ' काम पड़े ( आवश्यकता होगी) तो मैं माँगूँगी ' । २२ । राजा का ( से ) अभिवचन लेकर रानी मन में आनन्दित हो गयी । देवों ने जय-जयकार किया । इस प्रकार राजा दशरथ विजयी हुए । २३ । इन्द्र ने. ( राजा दशरथ को, बहुत आभूषण और अनुपम सुन्दर वस्त्र दिये । उस समय वृहस्पति ने दशरथ को आशीर्वाद दिया । २४ । फिर इन्द्र ने पूछा राजन्, तुम्हारे घर में क्या सन्तान है ?' तब दशरथं राजा को बेचैनी अनुभव हो गयी। वे व्याकुल और दुखी हो गये । २५ । तब वृहस्पति ने कहा - ' राजन्, चिन्ता न करो। तुम भाग्यवान हो । स्वयं श्रीभगवान् तुम्हारे पुत्र होकर अवतरित होंगे । २६ । विभाण्डिक ऋषि का मृगी ( हिरनी) से उत्पन्न शृंगी नामक पुत्र है। उसके द्वारा पुत्रेष्टि ( नामक ) यज्ञ कराओ; वह ब्रह्मनिष्ठ मुनि है । २७ । उसे स्त्री-पुरुष ( के अन्तर ) · का भान नहीं है; परन्तु वह गान से वश होगा । हे राजन्, यह सत्य सुनो कि किसी अन्य उपाय से वह नहीं आएगा । २८ । , तव दशरथ ने कहा- तुम अप्सरा को भेजो और ( उस ) मुनि को मोहित करो । ज्यों-त्यों करके उसे लाओ और अयोध्या में पहुॅचा दो ' । २९ । ऐसा कहकर राजा ने इन्द्र से आज्ञा माँगी और कैकेयी के साथ रथ में बैठकर वे नगर ( अयोध्या ) में आ गये । ३० । उन्होंने वृषपर्वा को मार डाला; पर्जन्य ( वर्षा का देवता ) मुक्त हो गया । समूची सृष्टि में वर्षा हो गयी और अयोध्या में खुशहाली आ गयी।

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